मटर की खेती (Matar ki Kheti) भारत में एक महत्वपूर्ण खेती क्रिया है और यह बड़े पैम्परस बाग़ों से लेकर छोटे किसानों के खेतों तक में की जाती है। मटर गर्मी की और सर्दी की साल में उत्तर भारत के खेतों में उगाई जाती है।

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भूमि की तैयारी :

 

भूमि की तैयारी एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो विभिन्न पौधों की खेती के लिए की जाती है। यह निम्नलिखित चरणों को शामिल करती है:

जल सूचना : अच्छी खेती के लिए, समर्थन देने वाली भूमि में पर्याप्त सीमा और भूमिगत जल सूचना की जानकारी होना आवश्यक है।

खेत का चयन : मटर के लिए सुनसान और अच्छी सुनेहरी मिट्टी का चयन करें, जिसमें अच्छा ड्रेनेज हो।

खेत की सुधार : खेत की सुधार के लिए उचित कीटनाशकों का इस्तेमाल करें, ताकि खेत में कीटाणु, फंगस, और उच्च उगाने वाले पौधों से बचा जा सके।

खेत की उपयुक्तता : मटर के लिए अच्छी खेती के लिए उपयुक्त खेत का चयन करें, जिसमें सूखे का समाप्त होता है और जल संचार सही रूप से होता है।

पोषण स्तर : भूमि के पोषण स्तर की जाँच करें और आवश्यकता के हिसाब से उर्वरकों का उपयोग करें।

 

पुनर्निर्माण और उचितीकरण : खेती के बाद, खेत की पुनर्निर्माण और उचितीकरण के लिए संपूर्ण प्रक्रिया को ध्यान से समाप्त करें।

ये चरण सुनिश्चित करें कि आपकी मटर की खेती उत्तम परिणाम दे सकती है और आप पौधों को सही से पोषित कर सकते हैं। 

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बुआई का समय : 

 
मटर की बुआई का समय बुआई क्षेत्र और जलवायु की आधारित होता है, लेकिन आमतौर पर इसे गर्मियों की अंत में या सर्दियों की शुरुआत में किया जाता है, जब बर्फबारी के आधार पर गुनगुना पानी और मिट्टी की तापमान में वृद्धि होती है।
 
भारत में गर्मियों की अंत में (मार्च-अप्रैल) और सर्दियों की शुरुआत (सितंबर-अक्टूबर) में मटर की बुआई की जाती है। बुआई के समय से पहले, खेत को अच्छे से तैयार किया जाता है, और उचित खाद और पोषण स्तर को सुनिश्चित करने के लिए भूमि का तापमान भी मापा जाता है।

बीज-दर, दूरी और बुआई : 

 
मटर की बुआई के लिए बीज-दर, दूरी और बुआई की तकनीक विभिन्न प्रकारों में बदल सकती है, लेकिन यह सामान्य तरीके से की जाती है:
 
बीज-दर (सीड रेट) : मटर की बुआई के लिए सामान्यत: 8 से 10 किलोग्राम का बीज-दर प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल किया जाता है।
 
बुआई की दूरी : मटर के बीजों के बुआई की दूरी प्रमुखतः बारीकी से डेटी जाती है। बीजों के बीच की दूरी बुआई की जाने वाली विभिन्न खासियतों पर निर्भर करती है, जैसे कि बीज की आकार और उपयोग की जाने वाली तकनीक। आमतौर पर, मटर की बुआई की दूरी 30 सेंटीमीटर से 45 सेंटीमीटर के बीच हो सकती है।
 
बुआई की तकनीक : बीजों को सीधे और समान दूरी पर बोने जाने के लिए बुआई की तकनीक को ध्यानपूर्वक अपनाएं। बुआई के दौरान सीधे खुरपे का उपयोग करना सुनिश्चित करें ताकि बीज विभिन्न गहराई में अच्छे से सीधे बोए जा सकें।
इन तकनीकों का उपयोग करके, मटर की बुआई को सही और सफल तरीके से किया जा सकता है, जिससे उच्च उत्पादकता और उत्तम परिणाम हासिल हो सकते हैं।

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उर्वरक (Fertilizers) :

 
उर्वरक पौधों के सही और स्वस्थ विकास के लिए आवश्यक मिनरल तत्वों और पोषक तत्वों को प्रदान करने के लिए उपयोग किए जाने वाले सामग्रियों को कहा जाता है। मटर की खेती में उर्वरकों का सही उपयोग करना महत्वपूर्ण है ताकि पौधों को आवश्यक पोषण मिल सके और उत्पादकता बढ़ सके।
 
 
नाइट्रोजन (Nitrogen) : मटर की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन एक महत्वपूर्ण उर्वरक है। यह पौधों की सुगन्ध, रंग, और विकास में मदद करता है।
 
फॉस्फोरस (Phosphorus) : फॉस्फोरस मटर की फूल और बुआई की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मटर की उत्पादकता में मदद करता है।
 
पोटैशियम (Potassium) : पोटैशियम पौधों के स्वस्थ विकास, सड़कों की ताकत, और उच्च उत्पादकता के लिए आवश्यक है।
 
सल्फर (Sulfur) : सल्फर मटर के पौधों के लिए आवश्यक होता है और यह पोषण को सही से संतुलित करने में मदद करता है।
 
माइक्रोन्यूट्रिएंट्स (Micronutrients) : छोटी मात्रा में मिलने वाले माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे कि बोरॉन, कॉपर, इरन, मैंगनीज, मोलिब्डेन, और जिंक मटर की सही उत्पादकता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
इन उर्वरकों की सही मात्रा और समान वितरण से मटर की खेती में उच्च उत्पादकता हो सकती है। स्थानीय जलवायु, खेत की स्थिति, और बीज के प्रकार के आधार पर एक योजना बनाएं ताकि उपयोगकर्ता अनुकूलित हो सकें।

सिंचाई (Irrigation) :

 
मटर की खेती में सिंचाई एक महत्वपूर्ण अंग है, क्योंकि मटर पौधों के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिलता है, जिससे उच्च उत्पादकता और अच्छी गुणवत्ता की मटर मिलती है।

कटाई और मड़ाई (Harvesting and Threshing) :

 
कटाई (Harvesting) : मटर की कटाई उस समय की जाती है जब मटर के दाने पूरी तरह से पके होते हैं, लेकिन फिर भी गहरे हरे रंग के होते हैं। कटाई के समय, पूरे पौधों को काट लिया जाता है, जिसमें मटर के दाने होते हैं। अधिकांशत: हाथों का उपयोग किया जाता है, लेकिन बड़े पैम्परस बागों के लिए मैकेनिज्म भी उपयोग किया जा सकता है।
 
मड़ाई (Threshing) : कटाई के बाद, मटर के दाने को मड़ाई करने का प्रक्रिया शुरू किया जाता है। मड़ाई का मुख्य उद्देश्य मटर के दानों को कच्चाई और पौधों से अलग करना है। यह विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है:
 
हाथों से मड़ाई : छोटे स्तर पर, हाथों से मटर के दाने को निकालना सबसे सामान्य तरीका है। इसमें मटर के दाने को पौधों से खींचकर निकाला जाता है।
 
मैकेनिज्म का उपयोग : बड़े पैम्परस बागों के लिए, मैकेनिज्म का उपयोग किया जा सकता है। इसमें मटर के दाने को मड़ाई मशीन के माध्यम से निकाला जाता है।
 
कंबाइन मड़ाई : कुछ क्षेत्रों में, कंबाइन मड़ाई मटर के दानों को निकालने के लिए उपयोग होती है, जिसमें एक विशेष मड़ाई और सीधे सिरे वाला हेड शामिल होता है।
 
सोलर ड्रायर्स : कुछ स्थानों में, सोलर ड्रायर्स का उपयोग किया जाता है जिससे मटर के दाने सुखाए जा सकते हैं।
इन प्रक्रियाओं के बाद, मटर को विपणी या उपभोक्ताओं को बेचने के लिए तैयार किया जा सकता है।

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